Monday, December 19, 2011

उफ़! ये दिल्ली कि सर्दी ...!!!


कोहरे से खेली आज जब छुपन छुपाई ..
साड्डी गड्डी ने भी ऐंठ दिखाई ..
DND Flyway में कुछ ऐसे इतराई 
लगा बादलों में हो रही  है फिसलम फिसलाई ..!

ये देख बचपन कि हमें बहुत याद आई ,
जब कोहरा होता था , परियों कि रज़ाई ..
क्षण भर को इक नन्ही परी , मेरे अन्दर भी इठलाई..!

पर तभी steering wheel ने ऐसी swing दिखाई..
और एक झटके में यथार्थ ने , दिमाग में दस्तक लगाई..
हाय ! तब  दिल्ली कि इस सर्दी को दी हमने राम दुहाई ..!

साड्डी गड्डी को भी हमने डांट लगाई ..  
तुम्हारी इन अठखेलियों से मेरी जान पर बन आई..!!
कोहरे से भी हमने तब मिन्नत लगाई .. 
ना करो इस सर्दी में ऐसी छुप्पन छुपाई..!!
- नंदिता ( १९/१२/२०११ )

Thursday, December 15, 2011

Happy Birthday!...Delhi..


मेरे नज़रिए से देखो तो, बड़ी दिलवाली है ये दिल्ली.. .

कुछ असमंजस , कुछ हौसलों से भरे .
रखे मैने कदम थे जहाँ,  वो शहर था दिल्ली.. 
खाली थे हाथ , बस खवाबों से भरी थी झोली मेरी ,
लिया मुझे हाथों हाथ ..जिस शहर ने , वो शहर था दिल्ली ,
चुन चुनकर बुने ख्वाब मैंने जिसमें  ..
वो सिलाई थी  दिलाई जिसने , उस शहर का नाम था दिल्ली !

मैंने तो बस चाहा था इक छोटा सा घरौंदा अपना ..
जिसने अपने दिल को ही नहीं ,
दुनिया को बना दिया आशियाँ मेरा ,
उस शहर का नाम था दिल्ली .. !

मेरी नज़र से देखो तो .. दिल वालों कि है ये दिल्ली ..
हर शक्श जो आया यहाँ ,उसके खाव्बों का अरमान है ये दिल्ली !

नहीं बन रहे हम एवैयीं शेखचिल्ली ..
कहे कोई तुझे कुछ भी ,
तुझ पर हम हैं कुर्बान, ऐ! दिल्ली ..!!
दिया तूने बहुत कुछ ,तेरे शुक्रान है ऐ! दिल्ली ..
मेरी नज़र से देखो तो , मेरी जान है ये दिल्ली ..!!
नंदिता (१५/१२/२०११ )

Friday, December 2, 2011

उम्मीद -1


उम्मीद -1

उम्मीद से जब हम रूबरू हुए ..
बड़ी बेआबरू सी ज़िन्दगी में,
मानो कुछ हलचल सी हुई ..!!

मायूस सी इस इन अंखियों में ,
उम्मीद की रौशनी जब प्रफुल्लित हुई ..!
दिप्त्मायी हो उठा तब वो जग मेरा ,
काली निशा भी नयनो में, काजल बन सजी ..!

इस नूर-ए-चश्म से हम बागी क्यों थे ..
आज हमें ये हैरानी सी हुई ..!
तेरे इस नूरानी एहसास ने ,
एक नयी तहरीर  लिखी ..

ज़िन्दगी से बाबस्ता हम फिर हुए ,
अंतर्मन में बसी  कशमकश ख़त्म हुई !

उम्मीद तुझ से आज जब हम रूबरू हुए ..
ज़िन्दगी फिर से मेरी रौशन  हुई ..!!

नंदिता (२/१२/२०११ )



Thursday, December 1, 2011

KHAMOSHI - 5


ख़ामोशी - ५ 

तुम ख़ामोशी के सीरे को थामे  ..
अपनी बात बयां करते रहे ..
नादाँ हम, शब्दों के इस मंथन में 
यूँ ही तुम्हारी बाट जोहते रहे ..!! 

नासमझी का ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा ,
नाउम्मीद से ये  फासले और बड़ते गए ..!

तेरे मेरे दरमियाँ, 
अधूरे से वो जो ख्वाब थे; बुनते गए ,उधड़ते गए ..! 
रह गया पीछे , खामोश सा ,एक दर्द भरा रिश्ता, 
क्यों नहीं उससे भी, हम बिछुड़ से गए..!
क्यों बार बार तुम और मैं ,
इस दर्द कि तासीर से उलझते गए , जुड़ते गए ..!!

तुम खामोशी से , अपनी बात बयां करते रहे ,
नादाँ हम, शब्दों में तुम्हारी बाट जोहते रहे ...!!
नंदिता (१/१२/२०११ )


Tuesday, November 22, 2011

ख़ामोशी Series - 4


ख़ामोशी -४ 

खिला था इक चमनाज़ार, दिलकश और मुन्नकश..
गुलज़ार थी जिसमे , इक मज़ाहर - ऐ - उल्फत ...!
आया इक तूफाँ , कुछ ऐसा ना जाने क्यों बहकर ,
भर दी जिसने दिल में , शिकवा और शिकायत ...
बड़ गए फिर फासले , 
बिछ गई, गिला ऐ फलसफों कि सतावत ..!!

इस गुलिस्ताँ ऐ उल्फत में है सब्त ,
तेरी ये मुतल -कुलहुक्म खामोशी....!
दामन ऐ दहार में जिसे ,
नवाज़ी है हमने बहुत अक़ीदत ..  !!

अब ज़िद  है हमें भी ,कभी तो कहोगे तुम भी ,
शुक्रान ऐ मुहब्बत, है तेरी ही ये नियामत ...!

यूँ ही नहीं बने हैं हम , तेरी ख़ामोशी कि आदत ..
होगा कभी तो तुम्हें  भी , इक एहसास ऐ मुक़द्दस ,
आखिर,
ये सादिक़ ऐ उल्फत ही दिखा सकती है ऐसी अज़ामत...!!  

-नंदिता ( २१/११/११ )

word meanings :
( अज़ामत -  greatness , सादिक़ - ऐ -उल्फत -  true love   , मुक़द्दस -  sacred , अक़ीदत - respect  , दामन ऐ दहार -  on the face of this world  , मुतल - कुलहुक्म-  arrogant , सब्त -  etched , फलसफों - philosophies  , सतावत - grandeur  , मज़ाहर ऐ उल्फत - symbol of love    , चमनाज़ार- garden  , मुनाक्कश - picturesque )    


Sunday, November 20, 2011

"अगरचे गिर भी जाये तो नहीं करेंगे हम कोई गम ...

रूबरू होते हैं हम भी खुदा से वहीँ ,जहाँ बसता है वो रज-कण सम ..!


गिर के भी गर संभल जाओ, तो इक हाथ बड़ा हमें भी संग ले चलो ..


खुदा का ये सफ़र है बड़ा हसीं, 
गर कदम मिला सको तो दर उसके संग  चलो..!!" 




- नंदिता 

Saturday, November 19, 2011

ख़ामोशी Series - 3


ख़ामोशी -३  

मौसम ने ज्योंही करवट ली ...
सर्दियों ने दी दरवाज़े पर दस्तक सी ..
कांच कि खिडकियों में , धीरे धीरे ,
बिछने लगी कोहरे कि परत छुईमुई छुईमुई सी ..
दूर जाती खामोश ये पगडण्डी ,
इस धुंद  में शायद हो गई ओझल ओझल सी ...!!!

कोहरे कि चादर से ढकी ,
कांच कि इस खिड़की में  
उँगलियों के पोरों से ,
लिखे थे दो नाम ,
एक तेरा था ... जो मेरा था ...
एक मेरा था .. वो जो तेरा था .. !!

इस खिड़की से सटी मेरी गर्म साँसे ,
और, कोहरे कि ये ठंडी परत ..
फिर ढक देती तेरे-मेरे नाम को ..
घुल जाती  तब हम दोनों कि नुमायत  
जैसे  दो जिस्म में हो एक जान सी...!! 

सर्द रातें और तेरी ये खामोशी ,
रहती है मेरे इर्द- गिर्द ...
कुछ सहमी सहमी सी , कुछ चहकी चहकी  सी ,
कुछ मायूस मायूस सी , कुछ रूमानी रूमानी सी ..!
और 
दिला जाती है तेरा एहसास ..
कुछ -कुछ बहका बहका सा , कुछ कुछ महका महका सा ,

ख़ामोशी के इस लिहाफ में ,
तेरी यादों कि गर्माहट  है ,
कुछ यूँ ही सिमटी सिमटी सी ..!
आगोश में इसके , जीवंत हो उठती है ,
उम्मीद कि किरणे , कुछ कुछ दहकी दहकी सी ..!!

तेरा तस्सवुर ना हो ना सही ,
सहारा हैं मेरे जीने का 
आज भी , तेरी ये खामोशी ...
कुछ कुछ मीठी मीठी ठण्ड सी ...
कुछ कुछ गुनगुनी धूप सी...!!

-नंदिता ( १८/११/२०११ )

(नुमायत - Significance, तस्सवुर - meeting in imagination)


Friday, November 18, 2011

KHAMOSHI - 2


Khamoshi Series - 2 
In Silence….

I Proclaim…
I Reclaim…
I Redeem…
I Seek….
I Submerge…
I Rejoice…
And
‘I’…. Dissolve…
……………. …..
….. …… ………
In Silence…
I am One with GOD…!!
…………………..
….. …… ………..
In Silence…
I am One with All…
………………..
….. ….. ………...
In Silence…..
I Am GOD…!!!!

Nandita (18/11/2011)

ख़ामोशी -1

ख़ामोशी-
तुम भी कभी-कभी,
बहुत सयानी हो जाती हो ..! 

बिखरे अल्फाजों कि गुत बाँध ,
क्यों बन जाती अनजानी हो ..!!

लफ़्ज़ों के इस खिलखिलाते आँगन में ,
हर्फों का इक बुत सी जाती हो.....!
फिर गुमसुम सी इस चुप्पी में ,
तराना नया एक  छेड़ जाती हो ...!!

थरथराते ये लब जो ना कह पाए ,
मासूम सी इन अंखियों से कह जाती हो ..!!

ख़ामोशी -
तुम भी कभी- कभी 
बहुत सयानी हो जाती हो !!

नंदिता (१८/११/२०११ )

Saturday, November 12, 2011

बिम्ब को प्रतिबिम्ब का एहसास, आज थोड़ा होने तो दो ..
दिया और बाती को कुछ ख़ास आज होने तो दो ..!
इन सिन्दूरी बदरा को, लजाई  इस झील में घुलने तो दो ..
बिम्ब और उसकी प्रति में रची, इस कृति को आज संवरने तो दो .. 
रंगों कि इस  रूमानियत में.... कुछ पल यूँ ही आज बहने तो दो ...!!
- नंदिता (11/11/11)

( Picture Courtesy - Mr.Shailesh Joshi )

Monday, October 24, 2011

"वो शब् -ऐ - हयात मे बैठे , महफ़िल को सजाते रहे ...
एक प्यारी सी वो मुहब्बत थी ..
जिसका जनाजा वहीँ से रुखसत भी हुआ ...
और उन्हें पता भी ना चला ...!!! "
.... ;) ;)


"अर्श से फर्श पर आये तो भी कोई गम नहीं ..
ज़र्रा ज़र्रा किस्मत को जोड़ कर हमने फिर ख्वाब सिये ,
इंशाल्लाह !!!... हम भी किसी से कम नहीं ...!!"
- नंदिता


"बातों बातों में अफसाना बन गया ...
गुफ्तगू क्यों कुछ चली ऐसी ..
वो जो अपना था ...बेगाना बन गया ..!
वक़्त क्योंकर कुछ बह चला ऐसा ..
इंतज़ार भी तेरा .. खुद दीवाना बन गया ..!!"

;) :) ;)
Diwali mein Holi ki Masti... hehee...Enjoy!! Happy Diwali!..!!




Friday, October 7, 2011

तेरे दर पर मेरे मौला ,जब मैंने सदका किया ..
बरसों का जैसे मानो , एक वाक्फा सा हुआ..!

तेरी उस नुमाया  सफ़ेद चिलमन में लहराती ,
लाल रेशम कि उस डोर से , नज़रों का जब सामना हुआ..
संगमरमर कि उस तक्सीस पर खिंची चली आई मैं ..
आज मेरे माज़ी ने जब मुझसे फिर रूबरू किया ..!!

(मेरे मौला -
वो हसरतों का जो रह गया था गुबार ,
आज मेरे अश्कों से बह निकला बेशुमार ,
फिर क्यों दुआ में इक हर्फ़ उसके नाम का आया ..
जब इस लाल रेशम कि डोर से हुआ मेरा दीदार ..!! )

मेरी दीवानगी ने ये कैसी महफ़िल सजाई ..
मेरे ख्वाजा आज तुझे मैंने इसका समायीन रखा..!
वो इक अश्क जो गिरा , बांधा उसने कुछ यूँ समां..
होठों से मोती मानो कुछ यूँ ही हो झर उठा ..!!
उस लाल डोरे से बंधी थी जो ख्वाहिशें ,
गाँठ दर गाँठ खुलती गयीं,आज उन्हें मैंने आज़ाद किया..!!

इस मंज़रनामे कि तहरीर मेरे मौला तूने है लिखी  
मुझसे अल्हेदा हो, आज मेरी यादों का जश्न बह चला ..!!
सुरमई सी शाम ढलती गई, जुगनुओं से समां रौशन हुआ ,
इस मुक़द्दस सी महफ़िल में मैंने ,आज एक 'उर्स' उसके नाम रखा ..!!

- नंदिता ( 6-Oct-2011)

word meanings:

मुक़द्दस - sacred, अल्हेदा - seperate, समायीन - audience, 
 वाक्फा : pause/ break ,   माज़ी -past,



नुमाया - significant , तक्सीस - partition, हर्फ़ - word/ letter,
उर्स - An yearly festival dedicated to someone generally to a saint ... where song/ poetry recital, Qawwaali etc are organised in memory of that particular being.





Saturday, September 17, 2011

ख्वाबों कि तासीर जब हम समझने चले ..

ज़र्रा ज़र्रा ख्वाहिशें कुछ ऐसी लिपटने लगी ,

इक तस्वीर उभारी कुछ ऐसी दिल में मेरे ..

ज़ाखिर- ऐ - अलफ़ाज़ भी कुछ सिमट से गए ,

वो तिलिस्म था या मेरे खाव्बों का घरौंदा...

कुछ यकीं सा हुआ ... कुछ यूँ ही बिखर सा गया ..!!



Thursday, August 18, 2011



Dedicated to Gulzaar Sahab on his 77th birthday... !!

अंखियों में मेरी बसा है 
इक गीला सा बादल ...
पलकों के आगोश में 
जैसे हो कुछ डूबा डूबा सा ...!

ढुंडती हूँ जब मैं उसका सिरा ,
लिपट जाता कुछ हलक़ में वो ऐसे ..
जैसे इक दर्द हो वहां
कुछ यूँ ही फंसा फंसा सा ...!
इक टीस सी उठती है ज़ेहन में मेरे ..
क्यों एहसास दिला जाती है ..
कुछ रुंधा रुंधा सा ...!!

इक झील तेरे नाम की,
बसी है इस दिल में ..
बादल का ये छोर शायद ,
यहीं कहीं पर है डूबा डूबा सा ..!

इस झील में पड़ी हैं
बर्फ की ऐसी सिलवटें ..
की एहसास वो इक तेरा , 
रह गया उसके नीचे,
शायद ,
कुछ यूँ ही जमा जमा सा ..!

ये ज़ख्म तेरा दिया
इतना गहरा क्यों है ...?
कि तेरी हर इक याद , 
बन गयी है इक सन्नाटा...!
और तेरे वजूद का ये  पन्ना,
रह गया ,
कुछ यूँ ही कोरा कोरा सा ..!!

उँगलियों के पोरों से 
उस झील को जब छुआ मैंने.. 
उन फिसलती लकीरों में 
धुन्धुलाता सा दिखा तेरा अक्स ..
मानो अब तलक कोहरे में 
था जैसे कुछ यूँ ही छुपा छुपा सा ...!

अंखियों में बसा यह गीला बादल 
तरसता है आज भी है उस सावन को ..
बहा दे जो ये गुबार ,
इस दरिया ऐ दिल का .. 
जो सदियों से है मेरे अन्दर 
शायद  कुछ  यूँ ही थमा थमा सा ..!

हाँ --
इक वो सावन ही तो
मेरा माझी होगा ..
बहा देगा जो,
तेरे नाम का हर इक ज़ख्म ..!
बूंद दर बूंद...
शायद ,
कुछ यूँ ही ज़र्रा- ज़र्रा सा ...!!

नंदिता  ( 18th Aug'11)

Wednesday, August 17, 2011


मुद्दतों बाद निकली है 
ये जोश ऐ कलम ...

झेल लेंगे हम आज 
ज़माने के हम हर सितम..
वक़्त क इस धार को 
पलटते  जायेंगे हम
हर पल,  हर दम ..

मेरी -तेरी ये दीवानगी ,
गर हो भी जाये जो ख़तम...!
जूनून ऐ अल्फाजों का ये जत्था 
चलता रहेगा यूँ ही मध्यम- मध्यम !

फीकी ना पड़ेगी ये स्याही ..
खायी है मेरी कलम ने ऐसी कसम..!

नंदिता ( 17/08/11)

आज फिर -

बना डाला है मैंने एक आशियाँ 
उस गुलिस्ताँ में , उन बहारों का..!

झूम उठी है पवन ,
हाँ सुर है सितारों का..!
ओड़नी पर धरा की 
क्या रंग चड़ा है धानी सा ..?

उम्मीद की कश्ती है 
कारवां है यादों का ..!
दूर कहीं साहिल 
दिख रहा टिमटिमाता सा..!

आसाँ नहीं है मंजिल 
पर जोश है दीवानों का ...!
बुन डाला मैंने भी एक घरौंदा 
सहारा पाकर ख़्वाबों का ..!
....
..... .... ...
बसना है बस अब बाकी ..
उसमें उन अरमानों का ...!!

नंदिता ( 30-Sep-1994)

Tuesday, August 9, 2011


तिमिर रश्मियों की , मैं तुम्हारी रात भी हूँ..
नील अम्बर की , राज कण धरा की हूँ ,,,!
ज्वाला ज्योति बनी मैं , अंधकार भी हूँ ,
जलती हुई राख भी और , फूलों का पराग भी हूँ ...!!

तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

आशा का दीप भी , निराशा भरी अंजलि भी हूँ ..
गहराई हूँ सागर की , तो ऊंचाई हिमालय की हूँ ..
स्मित हास की हूँ किरणे, तो हूँ रोष अग्नि की ..!
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

झूठ भी हूँ , मै सत्य की पुकार भी हूँ ,
पंथ दूसरों को बताते हुए, खुद भटक गयी हूँ..
विश्वास भी हूँ, अविश्वास की गाह भी हूँ ..!
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

कौवे की काँव हूँ , तो बुलबुल की पुकार भी हूँ ,
ज्ञान दीप में मैं अज्ञान का भण्डार भी हूँ ..
कड़कती धूप में मै छाया का आवास भी हूँ
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

सौरभ कण सम,काँटों का जाल भी हूँ ..
लम्हा भी हूँ, विस्मृत भाव भी हूँ ..
भृकुटी तानी हुई मृत्यु हूँ , नव अंकुर झंकार भी हूँ
उर में जन जन की बदली आग भी हूँ ...!

तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

नंदिता ( 13th Oct 1987)

Reflections..!!!.... the Devil and the Divine aspect in one's own self... a conversation with my Soul... :) Enjoy!!

Monday, August 8, 2011


कुछ पल ऐसे होते हैं ,
क्षण भंगुर मदमस्त जीवन में 
खुशबू अपनी फैला जाते हैं..
यादों की तलहटी में 
मधुर स्मृति बन जाते हैं ..!!

सुंदर प्रभात की बेला पर 
लालिमा फैलाते हैं ..
तारों की झंकार पर ,
अपना नृत्य दिखाते हैं ..!!

मन में सूनापन जब आता 
आकाश वीराना लगता है ..
तब पक्षी बन वो विचरते हैं ..
और अपना अस्तित्व बताते हैं !
आँखों से वर्षा जब होती ..
पलकों में शबनम बन जाते हैं..!!

हे सौम्यमायी पल ऐसे ,
मेरे पास आते रहना ..!
सूनी आँखों में मेरी ..
अपना अस्तित्व जतलाते रहना !!

- नंदिता ( 18th Feb' 88)

Monday, August 1, 2011

लोगों ने पूछा मुझसे
मेरा परिचय , मेरी पहचान ...!

सरसराती हवा आई और
फुसफुसाई वह ...

आँखों में नमी
और होठों में मुस्कान ...
यही है इसका
परिचय और पहचान ... !!!

- नंदिता :)

These were the words that had flown through my lips when we were being so called ragged by our M.Sc Geo seniors... and I was asked by them to narrate a small poem introducing myself... :)

Now at times I wonder..kitne idiot senti types hua karte they ham bhi kisi zamaney mein... he heeee... Enjoy!!!

Thursday, July 28, 2011

शनि ने गुरु पर
जब डाली तिरछी दृष्टी..
सरकार के पैरो तले 
मानो जमीन गई हो खिस्की !

गुरु के बळ पर 
जब सरकार ने दिखाई अपनी पैठ..
शनि देव बोले अरे ओ अन्ना ,
आ तू जंतर मंतर पर बैठ !
देगी जनता अब तेरा साथ ,
क्योकी हरदम रेहता है
मेरा उनके सर पर हाथ !

गुरु सर झुकाय बोले 
नही रखना चाहता 
अब कोई द्वेष मैं..
क्योकी राशी बदल 
जा रहा हू अब मैं मेष मे !
विनंती है शनिदेव ,
रहे तब तक कृपा तुम्हारी 
मेरे बाकी मीन काल के अवशेष मे !

शनि बोले गुरुदेव 
क्यो पडे हो इस झनझट जाल मे 
सरकार को सिखा देते 
सादगी से जीना 
अपने इस सुनहरे काळ मे !
जो तुम्हे ना समझ पाया 
उसका हुआ बनटाधार है ,
देवो के हो तुम गुरु ,
ये सब तुम्हारा ही तो चमत्कार है !!

वाह रे शनि , वाह रे गुरु ,
देख नंदिता आनंदित हुई ,
कैसा फंसा तुम्हारी माया मे 
ये सारा संसार है..! 

क्यो काबा ए दिल की ,
नज्म  नही छेडते हम ..!

हसरत दिल में है ,
फिर भी हाथ नही 
खोलते हम..
दस्तक प्यार देता तो है ..
फिर भी जुबा में 
ताला क्यो लगा देते हम ..!

एक फासला जो 
मुस्कुराहटो से हो जाये कम..
क्यो उसे फिर भी 
रंजिश की तळहटी में ..
में यू  दफना देते आये हम ...!!

क्यो काबा ए दिल की ,
नज्म  नही छेडते हम ...!!
मेघा  रे घनघोर तुम बरसो ...
त्रिप्त कर  दो 
फिर 
इस धरा को ,
इन कोमल कपोलो 
की तापिश को ...
...................
......... ........... .....
थोडा सा आसमा से ...
........ .........
....... ..........
थोडा सा अंखियो से ... !


हम है इस पल यहाँ ,
होँगे किस पल कहाँ ..
रहेंगी  यहाँ तब भी,
हमारे comments की ये निशानियाँ !

पलट के देखेंगे इधर
तो याद आयेंगे ये सब पल,
हमने जब भी लिखा यहाँ..
तो आपने भी कुछ  किया बयां
युहीं सिलसिला चलता रहा
बनती रही FB/ Blogs की दोस्ती की ये दास्ताँ !

हम है इस पल यहाँ 
होँगे किस पल कहाँ
रहेगी सदा यहाँ..
इस पल की ये दास्ताँ !


 हर वो लम्हा जो वक़्त के साथ ख़त्म हो जाता है..और वहीँ उसी समय उदित करता है एक और नया लम्हा ..एक नयी दास्ताँ लिए हुए ...  समर्पित है कुछ शब्द उन्ही कुछ ख़ास लम्हों के लिए ....और आप सभी के  लिए भी .. :) 





Friday, July 22, 2011

Bachpan ki Athkheliyaan... On Rains..!..Enjoy!

उमड़ -घुमड़ ,घुमड़ - उमड़ ,  
जैसे ही कारी बदरा ये छाई..
तुनक- तुनक, ठुमक - ठुमक ..
मोर ने भी ली इक अंगड़ाई ..!!

दहक - दहक , चहक- चहक ,
सूरज ने भी झाँका नभ से ..
गुपचुप- गुपचुप , छुप- छुप,
बदरा संग खेली छुपन- छुपाई ...!

ठनक -ठनक , छनक - छनक ,
देखो बूंदे धरा पर गिर आयीं ..
मिटटी की इस सोंधी खुशबु  ने . 
मुझे फिर बचपन की याद दिलाई ...

छपाक- छुपुक, छपाक -छुपुक ,
पानी में पैरों  ने मेरे 
देखो कैसी ताल बैठाई ...
हुआ मन बावरा, अरमानों ने मेरे ,
फिर नयी उमंग जगाई ...!! 

छन - छन , छन- छन ,
करती बूंदे जब 
अंजुरी में मेरे भर आयीं....
एक आस मेरे तन मन में ऐसे लहराई.. 
छप-छप , छप-छप 
झट से मैंने  
अपने चेहरे पर देखो कैसे हैं ये फ़ैलाई..!!

छमक-छमक, छनक -छनक ,
बावरे पगों ने जब  ,
अपनी पायल छनकाई ..
लपक लपक.. लहक लहक 
इक आवारा बदरा ने ,
मुझसे तभी आँख लड़ाई ..!

शर्मा कर सूर्य से मैंने ,
जब अपनी गुहार लगाईं.. 
झुरमुटों से झांकती धूप ने तभी ,
मुंख पर मेरे ऐसी लालिमा फैलाई ...
टप-टप , टप - टप 
टपकती इन बूंदों ने  
माथे पर मेरे जैसे 
सतरंगी बिंदिया हो चमकाई ...!

उमड़-घुमड़, घुमड़- उमड़ ,
जैसे ही ये बदरा छाई ..
मन ही मन मैं देखो ,
एक बचपन और गुज़ार आयीं ...!!

२२- जुलाई-२०११