मुद्दतों बाद निकली है
ये जोश ऐ कलम ...
झेल लेंगे हम आज
ज़माने के हम हर सितम..
वक़्त क इस धार को
पलटते जायेंगे हम
हर पल, हर दम ..
मेरी -तेरी ये दीवानगी ,
गर हो भी जाये जो ख़तम...!
जूनून ऐ अल्फाजों का ये जत्था
चलता रहेगा यूँ ही मध्यम- मध्यम !
फीकी ना पड़ेगी ये स्याही ..
खायी है मेरी कलम ने ऐसी कसम..!
नंदिता ( 17/08/11)
On the present trends of Anti corruption ride... :)
ReplyDeleteIn full support of Anna... :)