ख्वाबों कि तासीर जब हम समझने चले ..
ज़र्रा ज़र्रा ख्वाहिशें कुछ ऐसी लिपटने लगी ,
इक तस्वीर उभारी कुछ ऐसी दिल में मेरे ..
ज़ाखिर- ऐ - अलफ़ाज़ भी कुछ सिमट से गए ,
वो तिलिस्म था या मेरे खाव्बों का घरौंदा...
कुछ यकीं सा हुआ ... कुछ यूँ ही बिखर सा गया ..!!
बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .
Thank you... have done that... stay blessed!!..thanks for visiting and your valuable comments...!!
ReplyDeleteossum !
ReplyDeleteकुछ यूँ ही बिखर सा गया ....
अब उम्र बीतेगी उसे समेटते !