उम्मीद -1
बड़ी बेआबरू सी ज़िन्दगी में,
मानो कुछ हलचल सी हुई ..!!
मायूस सी इस इन अंखियों में ,
उम्मीद की रौशनी जब प्रफुल्लित हुई ..!
दिप्त्मायी हो उठा तब वो जग मेरा ,
काली निशा भी नयनो में, काजल बन सजी ..!
इस नूर-ए-चश्म से हम बागी क्यों थे ..
आज हमें ये हैरानी सी हुई ..!
तेरे इस नूरानी एहसास ने ,
एक नयी तहरीर लिखी ..
ज़िन्दगी से बाबस्ता हम फिर हुए ,
अंतर्मन में बसी कशमकश ख़त्म हुई !
उम्मीद तुझ से आज जब हम रूबरू हुए ..
ज़िन्दगी फिर से मेरी रौशन हुई ..!!
नंदिता (२/१२/२०११ )
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