Thursday, August 18, 2011



Dedicated to Gulzaar Sahab on his 77th birthday... !!

अंखियों में मेरी बसा है 
इक गीला सा बादल ...
पलकों के आगोश में 
जैसे हो कुछ डूबा डूबा सा ...!

ढुंडती हूँ जब मैं उसका सिरा ,
लिपट जाता कुछ हलक़ में वो ऐसे ..
जैसे इक दर्द हो वहां
कुछ यूँ ही फंसा फंसा सा ...!
इक टीस सी उठती है ज़ेहन में मेरे ..
क्यों एहसास दिला जाती है ..
कुछ रुंधा रुंधा सा ...!!

इक झील तेरे नाम की,
बसी है इस दिल में ..
बादल का ये छोर शायद ,
यहीं कहीं पर है डूबा डूबा सा ..!

इस झील में पड़ी हैं
बर्फ की ऐसी सिलवटें ..
की एहसास वो इक तेरा , 
रह गया उसके नीचे,
शायद ,
कुछ यूँ ही जमा जमा सा ..!

ये ज़ख्म तेरा दिया
इतना गहरा क्यों है ...?
कि तेरी हर इक याद , 
बन गयी है इक सन्नाटा...!
और तेरे वजूद का ये  पन्ना,
रह गया ,
कुछ यूँ ही कोरा कोरा सा ..!!

उँगलियों के पोरों से 
उस झील को जब छुआ मैंने.. 
उन फिसलती लकीरों में 
धुन्धुलाता सा दिखा तेरा अक्स ..
मानो अब तलक कोहरे में 
था जैसे कुछ यूँ ही छुपा छुपा सा ...!

अंखियों में बसा यह गीला बादल 
तरसता है आज भी है उस सावन को ..
बहा दे जो ये गुबार ,
इस दरिया ऐ दिल का .. 
जो सदियों से है मेरे अन्दर 
शायद  कुछ  यूँ ही थमा थमा सा ..!

हाँ --
इक वो सावन ही तो
मेरा माझी होगा ..
बहा देगा जो,
तेरे नाम का हर इक ज़ख्म ..!
बूंद दर बूंद...
शायद ,
कुछ यूँ ही ज़र्रा- ज़र्रा सा ...!!

नंदिता  ( 18th Aug'11)

Wednesday, August 17, 2011


मुद्दतों बाद निकली है 
ये जोश ऐ कलम ...

झेल लेंगे हम आज 
ज़माने के हम हर सितम..
वक़्त क इस धार को 
पलटते  जायेंगे हम
हर पल,  हर दम ..

मेरी -तेरी ये दीवानगी ,
गर हो भी जाये जो ख़तम...!
जूनून ऐ अल्फाजों का ये जत्था 
चलता रहेगा यूँ ही मध्यम- मध्यम !

फीकी ना पड़ेगी ये स्याही ..
खायी है मेरी कलम ने ऐसी कसम..!

नंदिता ( 17/08/11)

आज फिर -

बना डाला है मैंने एक आशियाँ 
उस गुलिस्ताँ में , उन बहारों का..!

झूम उठी है पवन ,
हाँ सुर है सितारों का..!
ओड़नी पर धरा की 
क्या रंग चड़ा है धानी सा ..?

उम्मीद की कश्ती है 
कारवां है यादों का ..!
दूर कहीं साहिल 
दिख रहा टिमटिमाता सा..!

आसाँ नहीं है मंजिल 
पर जोश है दीवानों का ...!
बुन डाला मैंने भी एक घरौंदा 
सहारा पाकर ख़्वाबों का ..!
....
..... .... ...
बसना है बस अब बाकी ..
उसमें उन अरमानों का ...!!

नंदिता ( 30-Sep-1994)

Tuesday, August 9, 2011


तिमिर रश्मियों की , मैं तुम्हारी रात भी हूँ..
नील अम्बर की , राज कण धरा की हूँ ,,,!
ज्वाला ज्योति बनी मैं , अंधकार भी हूँ ,
जलती हुई राख भी और , फूलों का पराग भी हूँ ...!!

तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

आशा का दीप भी , निराशा भरी अंजलि भी हूँ ..
गहराई हूँ सागर की , तो ऊंचाई हिमालय की हूँ ..
स्मित हास की हूँ किरणे, तो हूँ रोष अग्नि की ..!
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

झूठ भी हूँ , मै सत्य की पुकार भी हूँ ,
पंथ दूसरों को बताते हुए, खुद भटक गयी हूँ..
विश्वास भी हूँ, अविश्वास की गाह भी हूँ ..!
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

कौवे की काँव हूँ , तो बुलबुल की पुकार भी हूँ ,
ज्ञान दीप में मैं अज्ञान का भण्डार भी हूँ ..
कड़कती धूप में मै छाया का आवास भी हूँ
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

सौरभ कण सम,काँटों का जाल भी हूँ ..
लम्हा भी हूँ, विस्मृत भाव भी हूँ ..
भृकुटी तानी हुई मृत्यु हूँ , नव अंकुर झंकार भी हूँ
उर में जन जन की बदली आग भी हूँ ...!

तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

नंदिता ( 13th Oct 1987)

Reflections..!!!.... the Devil and the Divine aspect in one's own self... a conversation with my Soul... :) Enjoy!!

Monday, August 8, 2011


कुछ पल ऐसे होते हैं ,
क्षण भंगुर मदमस्त जीवन में 
खुशबू अपनी फैला जाते हैं..
यादों की तलहटी में 
मधुर स्मृति बन जाते हैं ..!!

सुंदर प्रभात की बेला पर 
लालिमा फैलाते हैं ..
तारों की झंकार पर ,
अपना नृत्य दिखाते हैं ..!!

मन में सूनापन जब आता 
आकाश वीराना लगता है ..
तब पक्षी बन वो विचरते हैं ..
और अपना अस्तित्व बताते हैं !
आँखों से वर्षा जब होती ..
पलकों में शबनम बन जाते हैं..!!

हे सौम्यमायी पल ऐसे ,
मेरे पास आते रहना ..!
सूनी आँखों में मेरी ..
अपना अस्तित्व जतलाते रहना !!

- नंदिता ( 18th Feb' 88)

Monday, August 1, 2011

लोगों ने पूछा मुझसे
मेरा परिचय , मेरी पहचान ...!

सरसराती हवा आई और
फुसफुसाई वह ...

आँखों में नमी
और होठों में मुस्कान ...
यही है इसका
परिचय और पहचान ... !!!

- नंदिता :)

These were the words that had flown through my lips when we were being so called ragged by our M.Sc Geo seniors... and I was asked by them to narrate a small poem introducing myself... :)

Now at times I wonder..kitne idiot senti types hua karte they ham bhi kisi zamaney mein... he heeee... Enjoy!!!