Thursday, December 1, 2011

KHAMOSHI - 5


ख़ामोशी - ५ 

तुम ख़ामोशी के सीरे को थामे  ..
अपनी बात बयां करते रहे ..
नादाँ हम, शब्दों के इस मंथन में 
यूँ ही तुम्हारी बाट जोहते रहे ..!! 

नासमझी का ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा ,
नाउम्मीद से ये  फासले और बड़ते गए ..!

तेरे मेरे दरमियाँ, 
अधूरे से वो जो ख्वाब थे; बुनते गए ,उधड़ते गए ..! 
रह गया पीछे , खामोश सा ,एक दर्द भरा रिश्ता, 
क्यों नहीं उससे भी, हम बिछुड़ से गए..!
क्यों बार बार तुम और मैं ,
इस दर्द कि तासीर से उलझते गए , जुड़ते गए ..!!

तुम खामोशी से , अपनी बात बयां करते रहे ,
नादाँ हम, शब्दों में तुम्हारी बाट जोहते रहे ...!!
नंदिता (१/१२/२०११ )


2 comments:

  1. wah Nandita wah.....dil ki kalam se likha dil tak seedha pahunch gaya....bahut sundar!!!!!!!

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  2. Thank you! Thank you..!!... Aapki Zarranawazi!

    Tahe Dil se aapka Dhanyawaad.... Dil Ki Awaaz hai..aakhir Dard E Bayan wahi se hi to hota hai.. ;)
    Love and light!!!

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