Tuesday, November 27, 2012


"कुछ कुछ रूमानी सी  ...
 कुछ कुछ रूहानी सी ..
 नज़्म, ये तेरी-मेरी 
 गा रही है ज़िन्दगी  ..!!"

वो हर्फ़ जो गले में 
रुंधे पड़े हुए थे कई ..
आज उन्हें आवाज़,
दिला  रही है ज़िन्दगी ..।
हाँ ,  तेरा मेरा गीत 
गुनगुना रही है ज़िन्दगी ...।।  

वक़्त की बंदिश में 
एक लम्हा,
जो खो गया था कभी 
उस लम्हे को सोज़ 
बना रही है ज़िन्दगी ..।। 
हाँ ,
एक नयी सरगम 
गुनगुना रही है ज़िन्दगी।।

तेरी यादें जो महफूज़ थीं 
इक संदूक में कहीं ..
उन्हें खुली हवा में 
सहला रही है ज़िन्दगी ..। 
उनकी आज़ादी का जश्न 
मना रही है ज़िन्दगी .. ।।

कुछ कुछ रूमानी सी
कुछ कुछ रूहानी सी , 
हाँ , तुझे मुझे ..
इक सुफिआना रक्स में ,
झुमा रही है ज़िन्दगी ...।। 

~ नंदिता ( 27/11/12)


Wednesday, November 21, 2012

.... पतझड़- I ....

" पतझड़ में भी बहारें ढूँढता ,
यादों का कारवां ..
शब्दों का क्या कभी,
मोहताज रहा ..।। 

नज़रों ने ढूँढा था नज़रों को 
जिस तरह 
वो वाकया भी बेमिसाल रहा ..।


किताबों के पन्नों में ,
गुल न दबा था कभी कोई ..
स्मृतियों का गुलिस्ताँ
फिर भी आबाद रहा ..।।

क़दमों तले ,
सूखे चरमराते इन पत्तों में ,
ज़िन्दगी तेरी
तल्खीयों का एहसास हुआ .. ।

फिर भी, इस दिल ने,
यादों का गुलिस्ताँ समेटे ,
आज पतझड़ को
बहारों से आबाद किया ...।।

नंदिता ( 21/11/12 )







Saturday, November 10, 2012



कई बार ,
क्यों हो जाता है 
एक साधारण से
प्रश्न का उत्तर ,
इतना मुश्किल ...!

तुमने कितनी आसानी से
पूछ डाला," कैसे हो" .... 
और मैंने बरसों की 
खामूशियों को तोड़ते हुए 
कह डाला , " ठीक हूँ ". 

पर , 
इस "कैसे हो" से "ठीक हूँ "
के बीच बसी दूरियां बाँचते
इस सफ़र में,
तुम्हारा ये प्रश्न 
क्यों उमड़ता - घुमड़ता गया ..
क्यों मेरा ये उत्तर , 
घुलता गया, पिघलता गया ..


बरसों से पाली,
इस खामोशी को 
वैसे कहने के लिए,
था  बहुत कुछ ...

थे कई गिले शिकवे ..
थीं पेशानियों में कई यादें , 
जमी हुई सी ..।। 

थे कई प्यार भरे लम्हे भी  ,
गोशा, यादों के समुन्दर से ,
लहरें बन उमड़ पड़े हों ..।

एक याद थी,
आँसुओं से उमड़ी हुई ,
हाँ , एक पल भी था,
मोतियों सा बिखरा हुआ .. ।।

तुम्हारे उस
"कैसे हो"की सादगी  ,
है मुझे  निरुत्तर कर जाती ..

पर , तुम ही बताओ  , 
अपने इस "ठीक हूँ" की गहराई ,
मैं  हर्फों में कैसे बाँध पाती ..।।

~ नंदिता ( 10/11/12)