Tuesday, November 22, 2011

ख़ामोशी Series - 4


ख़ामोशी -४ 

खिला था इक चमनाज़ार, दिलकश और मुन्नकश..
गुलज़ार थी जिसमे , इक मज़ाहर - ऐ - उल्फत ...!
आया इक तूफाँ , कुछ ऐसा ना जाने क्यों बहकर ,
भर दी जिसने दिल में , शिकवा और शिकायत ...
बड़ गए फिर फासले , 
बिछ गई, गिला ऐ फलसफों कि सतावत ..!!

इस गुलिस्ताँ ऐ उल्फत में है सब्त ,
तेरी ये मुतल -कुलहुक्म खामोशी....!
दामन ऐ दहार में जिसे ,
नवाज़ी है हमने बहुत अक़ीदत ..  !!

अब ज़िद  है हमें भी ,कभी तो कहोगे तुम भी ,
शुक्रान ऐ मुहब्बत, है तेरी ही ये नियामत ...!

यूँ ही नहीं बने हैं हम , तेरी ख़ामोशी कि आदत ..
होगा कभी तो तुम्हें  भी , इक एहसास ऐ मुक़द्दस ,
आखिर,
ये सादिक़ ऐ उल्फत ही दिखा सकती है ऐसी अज़ामत...!!  

-नंदिता ( २१/११/११ )

word meanings :
( अज़ामत -  greatness , सादिक़ - ऐ -उल्फत -  true love   , मुक़द्दस -  sacred , अक़ीदत - respect  , दामन ऐ दहार -  on the face of this world  , मुतल - कुलहुक्म-  arrogant , सब्त -  etched , फलसफों - philosophies  , सतावत - grandeur  , मज़ाहर ऐ उल्फत - symbol of love    , चमनाज़ार- garden  , मुनाक्कश - picturesque )    


Sunday, November 20, 2011

"अगरचे गिर भी जाये तो नहीं करेंगे हम कोई गम ...

रूबरू होते हैं हम भी खुदा से वहीँ ,जहाँ बसता है वो रज-कण सम ..!


गिर के भी गर संभल जाओ, तो इक हाथ बड़ा हमें भी संग ले चलो ..


खुदा का ये सफ़र है बड़ा हसीं, 
गर कदम मिला सको तो दर उसके संग  चलो..!!" 




- नंदिता 

Saturday, November 19, 2011

ख़ामोशी Series - 3


ख़ामोशी -३  

मौसम ने ज्योंही करवट ली ...
सर्दियों ने दी दरवाज़े पर दस्तक सी ..
कांच कि खिडकियों में , धीरे धीरे ,
बिछने लगी कोहरे कि परत छुईमुई छुईमुई सी ..
दूर जाती खामोश ये पगडण्डी ,
इस धुंद  में शायद हो गई ओझल ओझल सी ...!!!

कोहरे कि चादर से ढकी ,
कांच कि इस खिड़की में  
उँगलियों के पोरों से ,
लिखे थे दो नाम ,
एक तेरा था ... जो मेरा था ...
एक मेरा था .. वो जो तेरा था .. !!

इस खिड़की से सटी मेरी गर्म साँसे ,
और, कोहरे कि ये ठंडी परत ..
फिर ढक देती तेरे-मेरे नाम को ..
घुल जाती  तब हम दोनों कि नुमायत  
जैसे  दो जिस्म में हो एक जान सी...!! 

सर्द रातें और तेरी ये खामोशी ,
रहती है मेरे इर्द- गिर्द ...
कुछ सहमी सहमी सी , कुछ चहकी चहकी  सी ,
कुछ मायूस मायूस सी , कुछ रूमानी रूमानी सी ..!
और 
दिला जाती है तेरा एहसास ..
कुछ -कुछ बहका बहका सा , कुछ कुछ महका महका सा ,

ख़ामोशी के इस लिहाफ में ,
तेरी यादों कि गर्माहट  है ,
कुछ यूँ ही सिमटी सिमटी सी ..!
आगोश में इसके , जीवंत हो उठती है ,
उम्मीद कि किरणे , कुछ कुछ दहकी दहकी सी ..!!

तेरा तस्सवुर ना हो ना सही ,
सहारा हैं मेरे जीने का 
आज भी , तेरी ये खामोशी ...
कुछ कुछ मीठी मीठी ठण्ड सी ...
कुछ कुछ गुनगुनी धूप सी...!!

-नंदिता ( १८/११/२०११ )

(नुमायत - Significance, तस्सवुर - meeting in imagination)


Friday, November 18, 2011

KHAMOSHI - 2


Khamoshi Series - 2 
In Silence….

I Proclaim…
I Reclaim…
I Redeem…
I Seek….
I Submerge…
I Rejoice…
And
‘I’…. Dissolve…
……………. …..
….. …… ………
In Silence…
I am One with GOD…!!
…………………..
….. …… ………..
In Silence…
I am One with All…
………………..
….. ….. ………...
In Silence…..
I Am GOD…!!!!

Nandita (18/11/2011)

ख़ामोशी -1

ख़ामोशी-
तुम भी कभी-कभी,
बहुत सयानी हो जाती हो ..! 

बिखरे अल्फाजों कि गुत बाँध ,
क्यों बन जाती अनजानी हो ..!!

लफ़्ज़ों के इस खिलखिलाते आँगन में ,
हर्फों का इक बुत सी जाती हो.....!
फिर गुमसुम सी इस चुप्पी में ,
तराना नया एक  छेड़ जाती हो ...!!

थरथराते ये लब जो ना कह पाए ,
मासूम सी इन अंखियों से कह जाती हो ..!!

ख़ामोशी -
तुम भी कभी- कभी 
बहुत सयानी हो जाती हो !!

नंदिता (१८/११/२०११ )

Saturday, November 12, 2011

बिम्ब को प्रतिबिम्ब का एहसास, आज थोड़ा होने तो दो ..
दिया और बाती को कुछ ख़ास आज होने तो दो ..!
इन सिन्दूरी बदरा को, लजाई  इस झील में घुलने तो दो ..
बिम्ब और उसकी प्रति में रची, इस कृति को आज संवरने तो दो .. 
रंगों कि इस  रूमानियत में.... कुछ पल यूँ ही आज बहने तो दो ...!!
- नंदिता (11/11/11)

( Picture Courtesy - Mr.Shailesh Joshi )