ख़ामोशी -३
मौसम ने ज्योंही करवट ली ...
सर्दियों ने दी दरवाज़े पर दस्तक सी ..
कांच कि खिडकियों में , धीरे धीरे ,
बिछने लगी कोहरे कि परत छुईमुई छुईमुई सी ..
दूर जाती खामोश ये पगडण्डी ,
इस धुंद में शायद हो गई ओझल ओझल सी ...!!!
कोहरे कि चादर से ढकी ,
कांच कि इस खिड़की में
उँगलियों के पोरों से ,
लिखे थे दो नाम ,
एक तेरा था ... जो मेरा था ...
एक मेरा था .. वो जो तेरा था .. !!
इस खिड़की से सटी मेरी गर्म साँसे ,
और, कोहरे कि ये ठंडी परत ..
फिर ढक देती तेरे-मेरे नाम को ..
घुल जाती तब हम दोनों कि नुमायत
जैसे दो जिस्म में हो एक जान सी...!!
सर्द रातें और तेरी ये खामोशी ,
रहती है मेरे इर्द- गिर्द ...
कुछ सहमी सहमी सी , कुछ चहकी चहकी सी ,
कुछ मायूस मायूस सी , कुछ रूमानी रूमानी सी ..!
और
दिला जाती है तेरा एहसास ..
कुछ -कुछ बहका बहका सा , कुछ कुछ महका महका सा ,
ख़ामोशी के इस लिहाफ में ,
तेरी यादों कि गर्माहट है ,
कुछ यूँ ही सिमटी सिमटी सी ..!
आगोश में इसके , जीवंत हो उठती है ,
उम्मीद कि किरणे , कुछ कुछ दहकी दहकी सी ..!!
तेरा तस्सवुर ना हो ना सही ,
सहारा हैं मेरे जीने का
आज भी , तेरी ये खामोशी ...
कुछ कुछ मीठी मीठी ठण्ड सी ...
कुछ कुछ गुनगुनी धूप सी...!!
-नंदिता ( १८/११/२०११ )
ख़ामोशी के इस लिहाफ में ,
ReplyDeleteतेरी यादों कि गर्माहट है....
kya bat hai... naya khayal !!
Aapne sahi pakda jumle ko....
ReplyDeleteActually the entire poem was created keeping in focus these two lines... they were the first one to pop out of my mind... and then words just flew around them to create what you have seen above... :)
Shayari mein aapki pakad lajawab hai... thank you! Thank you!
खामोशी कुछ कुछ मीठी मीठी ठण्ड सी ...
ReplyDeleteकुछ कुछ गुनगुनी धूप सी...!!
सुंदर रचना ..
Dhanyawaad...!!
ReplyDeleteThanks for liking it... :)
waah waah ji kya baat hai itni khubsurat khamoshi ....
ReplyDeleteabhar aap ka nandita ji share karne ke liye
ReplyDeleteregards
Vinay .. :)
Thanks for liking it....
ReplyDeletetrying to pen down on various moods of Khamoshi.. :)
God bless!!