क्यो काबा ए दिल की ,
क्यो काबा ए दिल की ,
नज्म नही छेडते हम ..!
हसरत दिल में है ,
फिर भी हाथ नही
खोलते हम..
दस्तक प्यार देता तो है ..
फिर भी जुबा में
ताला क्यो लगा देते हम ..!
एक फासला जो
मुस्कुराहटो से हो जाये कम..
क्यो उसे फिर भी
रंजिश की तळहटी में ..
में यू दफना देते आये हम ...!!
क्यो काबा ए दिल की ,
नज्म नही छेडते हम ...!!
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