Wednesday, August 17, 2011

आज फिर -

बना डाला है मैंने एक आशियाँ 
उस गुलिस्ताँ में , उन बहारों का..!

झूम उठी है पवन ,
हाँ सुर है सितारों का..!
ओड़नी पर धरा की 
क्या रंग चड़ा है धानी सा ..?

उम्मीद की कश्ती है 
कारवां है यादों का ..!
दूर कहीं साहिल 
दिख रहा टिमटिमाता सा..!

आसाँ नहीं है मंजिल 
पर जोश है दीवानों का ...!
बुन डाला मैंने भी एक घरौंदा 
सहारा पाकर ख़्वाबों का ..!
....
..... .... ...
बसना है बस अब बाकी ..
उसमें उन अरमानों का ...!!

नंदिता ( 30-Sep-1994)

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