Thursday, July 28, 2011

शनि ने गुरु पर
जब डाली तिरछी दृष्टी..
सरकार के पैरो तले 
मानो जमीन गई हो खिस्की !

गुरु के बळ पर 
जब सरकार ने दिखाई अपनी पैठ..
शनि देव बोले अरे ओ अन्ना ,
आ तू जंतर मंतर पर बैठ !
देगी जनता अब तेरा साथ ,
क्योकी हरदम रेहता है
मेरा उनके सर पर हाथ !

गुरु सर झुकाय बोले 
नही रखना चाहता 
अब कोई द्वेष मैं..
क्योकी राशी बदल 
जा रहा हू अब मैं मेष मे !
विनंती है शनिदेव ,
रहे तब तक कृपा तुम्हारी 
मेरे बाकी मीन काल के अवशेष मे !

शनि बोले गुरुदेव 
क्यो पडे हो इस झनझट जाल मे 
सरकार को सिखा देते 
सादगी से जीना 
अपने इस सुनहरे काळ मे !
जो तुम्हे ना समझ पाया 
उसका हुआ बनटाधार है ,
देवो के हो तुम गुरु ,
ये सब तुम्हारा ही तो चमत्कार है !!

वाह रे शनि , वाह रे गुरु ,
देख नंदिता आनंदित हुई ,
कैसा फंसा तुम्हारी माया मे 
ये सारा संसार है..! 

क्यो काबा ए दिल की ,
नज्म  नही छेडते हम ..!

हसरत दिल में है ,
फिर भी हाथ नही 
खोलते हम..
दस्तक प्यार देता तो है ..
फिर भी जुबा में 
ताला क्यो लगा देते हम ..!

एक फासला जो 
मुस्कुराहटो से हो जाये कम..
क्यो उसे फिर भी 
रंजिश की तळहटी में ..
में यू  दफना देते आये हम ...!!

क्यो काबा ए दिल की ,
नज्म  नही छेडते हम ...!!
मेघा  रे घनघोर तुम बरसो ...
त्रिप्त कर  दो 
फिर 
इस धरा को ,
इन कोमल कपोलो 
की तापिश को ...
...................
......... ........... .....
थोडा सा आसमा से ...
........ .........
....... ..........
थोडा सा अंखियो से ... !


हम है इस पल यहाँ ,
होँगे किस पल कहाँ ..
रहेंगी  यहाँ तब भी,
हमारे comments की ये निशानियाँ !

पलट के देखेंगे इधर
तो याद आयेंगे ये सब पल,
हमने जब भी लिखा यहाँ..
तो आपने भी कुछ  किया बयां
युहीं सिलसिला चलता रहा
बनती रही FB/ Blogs की दोस्ती की ये दास्ताँ !

हम है इस पल यहाँ 
होँगे किस पल कहाँ
रहेगी सदा यहाँ..
इस पल की ये दास्ताँ !


 हर वो लम्हा जो वक़्त के साथ ख़त्म हो जाता है..और वहीँ उसी समय उदित करता है एक और नया लम्हा ..एक नयी दास्ताँ लिए हुए ...  समर्पित है कुछ शब्द उन्ही कुछ ख़ास लम्हों के लिए ....और आप सभी के  लिए भी .. :) 





Friday, July 22, 2011

Bachpan ki Athkheliyaan... On Rains..!..Enjoy!

उमड़ -घुमड़ ,घुमड़ - उमड़ ,  
जैसे ही कारी बदरा ये छाई..
तुनक- तुनक, ठुमक - ठुमक ..
मोर ने भी ली इक अंगड़ाई ..!!

दहक - दहक , चहक- चहक ,
सूरज ने भी झाँका नभ से ..
गुपचुप- गुपचुप , छुप- छुप,
बदरा संग खेली छुपन- छुपाई ...!

ठनक -ठनक , छनक - छनक ,
देखो बूंदे धरा पर गिर आयीं ..
मिटटी की इस सोंधी खुशबु  ने . 
मुझे फिर बचपन की याद दिलाई ...

छपाक- छुपुक, छपाक -छुपुक ,
पानी में पैरों  ने मेरे 
देखो कैसी ताल बैठाई ...
हुआ मन बावरा, अरमानों ने मेरे ,
फिर नयी उमंग जगाई ...!! 

छन - छन , छन- छन ,
करती बूंदे जब 
अंजुरी में मेरे भर आयीं....
एक आस मेरे तन मन में ऐसे लहराई.. 
छप-छप , छप-छप 
झट से मैंने  
अपने चेहरे पर देखो कैसे हैं ये फ़ैलाई..!!

छमक-छमक, छनक -छनक ,
बावरे पगों ने जब  ,
अपनी पायल छनकाई ..
लपक लपक.. लहक लहक 
इक आवारा बदरा ने ,
मुझसे तभी आँख लड़ाई ..!

शर्मा कर सूर्य से मैंने ,
जब अपनी गुहार लगाईं.. 
झुरमुटों से झांकती धूप ने तभी ,
मुंख पर मेरे ऐसी लालिमा फैलाई ...
टप-टप , टप - टप 
टपकती इन बूंदों ने  
माथे पर मेरे जैसे 
सतरंगी बिंदिया हो चमकाई ...!

उमड़-घुमड़, घुमड़- उमड़ ,
जैसे ही ये बदरा छाई ..
मन ही मन मैं देखो ,
एक बचपन और गुज़ार आयीं ...!!

२२- जुलाई-२०११ 


Thursday, July 14, 2011

:) 
I believe in the concept of Buddhahood...that each of us has a strong buddha nature within us... it only needs to be invoked...... .

एक जूनून
मेरे दिल में भी
दीवानगी की तरह
रहता है दौड़ता  .....

ये जूनून है
उस खुमार का 
उस एहसास का
हाँ ,
ये जूनून है मेरे प्यार का.....

ये सन्नाटा जो चीखता है ...
इन गलियों में ..
क्यों ना आज,
तेरे दिल में इसकी आवाज़ फैला दूँ मैं ..!
हाँ , क्यों ना ...
फिर एक नया साज़ छेड़ दूँ मैं ..
प्यार का , उल्लास का .. !!

एक आवाज़ उठती है
मेरे ज़ेहन से ...
के ले लूँ तेरे बंजर मन को 
अपने आँचल में ..

मिटा दूँ तेरा अक्स ...
वो हवानियत का ...
फैला दूँ तेरे दामन में 
सैलाब इंसानियत का ..!

हाँ ..
फैला दूँ जग में वो लम्हा ...
प्यार का , दुलार का ...
हाँ मधुर स्मित हास का .....!!!

R.I.P Mumbaikars...God bless!!

अपने हैवानियत के खेल में ,
तू कितने चराग ऐ रोशन बुझाता चला गया....
क्यों तू धर्म के नाम पर 
ऐसा जूनून फैलता चला गया ..??

गर तेरी रग में दौड़ता है लहू इंसान का ..
मुझे बस तू इतना बता जा ...
बहा है जो खून इस लहू ऐ दरिया में..
वो क्या तेरा ना था ,वो  क्या मेरा ना था ..
गर हिन्दू का था तो क्या मुस्लमान का ना था..
गर सिख का था तो क्या इसाई का ना था ..

फिर तेरा मकसद क्या है ....?
ये किस धर्म के नाम पर तू.. 
ये कौन सा फलसफा समझाता चला गया ...
फिर क्यों तू ऐसा जूनून फैलता चला गया ..??? 

फिर क्यों ....
.....
....
...
तू ऐसा जूनून फैलता चला गया ...???

( R.I.P All the affected Mumbaikars... In-spite of all this the Spirit of Mumbai has risen from its ashes... and has silenced all its detractors...Long Live Mumbai and Long Live Mumbaikars...Be blessed always..God bless!

Tuesday, July 12, 2011

" फौजी ब्योली !! "

कल कल बहती ये नदी ,
पेड़-पौधे , ये वादी 
और हर रोज़ की तरह
डूबता ये उदास सूर्य ...
हाँ साक्षी हैं ये -
तुम्हारे इंतज़ार का ,
जो किया है मैंने 
हर पल - हर क्षण... !

आज सालों बाद 
तुम्हारी बाहों ने, 
एहसास करा दिया है मुझे 
फिर उस सिन्दूरी शाम का ...
जिसे गुज़रे वर्षों बीत गए हैं !

उस बार की तरह 
इस सुबह भी
तुम मुस्कुराये  और बोले -
" ब्योली जाना है मुझे 
फ़ौज की नौकरी है !"
और मेरी उदास आँखे 
बोल उठी -
"उठ जाता है बोझ 
लकड़ी के गट्ठरों का 
पर बिरह का यह बोझ 
अब उठाये नहीं उठता !"

तुमने मेरे कंधे थपथपाए 
और इस बार भी ..
फिर जल्दी आने का 
वादा कर चले गए !

हौले से 
सांझ ने लाल चुनर ओड़ ली 
और हर शाम की तरह 
इस शाम भी
शरीक हो गयी 
मेरी उदासी में !

पेड़ों की झुरमुटों से 
ना जाने कब ....
दबे पाँव आकर ,
कोहरे की चादर 
लिपट गयी मुझसे ...!

पता नहीं 
आँखों में समाई ये नमी 
कोहरे की है या ...
तुम्हारे जाते पदचापों को सुन 
अन्दर कहीं 
मेरा गीला मन 
सिसकने लगा है... !

9th May '94

Monday, July 11, 2011

For the LIGHT of my life.. :)

The buds of our friendship
unfurled
and blossomed into
the Garden Of LOVE..
Engulfed in its fragrance
is our Love....

It has made
all the 
difference in my life.

FOR NOW,

I smile often,
'cos I know ,
I am smiling with you.
I talk more,
for you are there to listen to me.

I laugh more,
'cos I love to hear your voice
along with that of mine....

I am hardly angry,
for you taught me to control it..

I have become more compromising,
for now I know
how it strengthens the bonds of love...

Above all,
I am now my real self..
for you love the person in me...

This come to THANK YOU,
for sharing with me
the Garden of love.....

'cos now I breathe
and live in  its fragrance....
for I cannot think of
Living otherwise...!

( Dedicated to the LIGHT of my life... ;)

 and also to Chitra..who actually taught me to control my anger... so much so that now at times I get frustrated that I don't get angry at all anymore... :) 

Saturday, July 9, 2011

I saw you there,

feeling lonely and depressed....
but the distances
which had made us drift apart
didn't allow me to touch 
and reach your heart....

IT WAS THEN
 -
How I wanted 

How I wanted
to drive away the gloominess
which had enclosed our lives...

to tell you,
my shoulders are always there
for you to lean on to....

How I wanted
to put a hand 
on your shoulder
and say
HOW VERY SORRY I AM...!!!

For however hard it may be
I want to make us realize
LOVE being an eternal thing
never dies....

So let us sit together 
and talk
maybe perhaps we can
take a walk..

and solve the problems of -
our apprehensions.....
our insecurities....
our misunderstandings....!!!

29-May-1995

Dedicated to all my friends...who were a very important part of my life... then drifted away... some have come back again...some are still contemplating... but to me..all of you are a blessed soul...Be blessed always..God bless!



Wednesday, July 6, 2011

अंखियों के कोर में
बहुत देर से झिलमिला रही ,
वो आंसू की एक बूँद
बही तो थी .....
झुलस गयी अर्ध्यपथ पर ,
दहेज़ की अग्नि में
वो कोमल कपोल
तप जो रहे थे !

शायद -
था अंत यही
किसी की बहु ,
किसी की बेटी का .......!!!!!
१९९२.
 

Monday, July 4, 2011

An ODE to my Pen... अपनी लेखनी को सादर समर्पित ... :)

याद है तुम्हें,
जब चूमा था 
पहली बार तुमने 
मेरे हाथों को ...!
कितनी 
सहमी , सकुचाई
थीं  तुम ;
जब मैंने 
प्यार से चेहरे को तुम्हारे 
लिया था अपने हाथों में !

मिलन की वो घड़ी,
आज भी चित्रांकित है,
मेरे अन्दर....
शर्म और संकोच में  लिपटी 
कितनी हिचकिचा रही थीं तुम ...

और मेरे विचारों का तूफ़ान ,
जैसे प्रियेसी से मिलने को
प्रिय हो आतुर  ...
बिखेरने लगा था,
लालिमा
तुम्हारे होंठो की ...  !

रचा डाली थी तब 
हमने , 
प्रथम कृति ...
मेरे जीवन की....!!


युगमंच के एक नाटक " जिन लाहौर नहीं देखियाँ ओ जनमियाँ नहीं " के लिए रचित एक काव्य ...! A beautiful story of partition, love, hatred, religion... its about an old lady's saga and confusion about her life time...

ये क्या असर है . बचपन का सफ़र है ,
वो बागों में यूँ लटकते झूले ,
वो पुरवाई जो हौले से गालों को छू ले I
वो बचपन के दिन जब हम थे फले -फूले, 

वो पतंगों का हवा में सरसराना - लहराना ,
लिपटती पेंचो में खुद का खो जाना ,
वो उंगुलियों के पोरों से कंचों का टकराना ,
खवाबों का हो जैसे बुनना सजाना ....!

मुझे आज उस बचपन की है क्यों याद आई 
क्यों हो गयी मुझे आज से ऐसी रुसवाई 
वो बचपन की होली , जो थी मैंने खेली 
हंसा देती है मुझे आज भी वो रंगों की थैली !

होली को मैंने आज जब देखा 
इक काँटा सा चुभ गया दिल में तीखा ,
लहू की नदी थी या खून का था छिंटा,
कहीं इन में तो नहीं खो गया मेरा बेटा !
खुदा के बाशिंदे क्यों जल रहे मर रहे ,
क्यों नहीं वो बचपन के से दिन रहे !

कहाँ खो गयी वो खिलखिलाती सी हंसी 
क्यों हूँ आज मै भी डरी डरी सी ...
होश क्यों नहीं की अब मैं कहाँ हूँ ,
या भटकती यादों की गलियों का कारवां हूँ ...

ऐ खुदा ! थाम ले मुझे अपने दामन में ...
या भटकने दे मुझे ऐसे ही 
बचपन के आँगन में ...!! 



मधुर स्मृतियों के संगम के
उस पार ये बंजर है कैसा ..
यादों की चंचल शोख किरणों में- 
ये अविस्तृत भाव है कैसा !

जलकुंड उस पार , या 
रेत के टिलों की है मृगतृष्णा ..
आह ! नवन्कुर उपजित कर आशा में -
निराशा का ये सागर गहराता कैसा !

अच्छाई उसकी व्याप्त सर्व पर , पर 
धुंध ने गहराया उसका ये चेहरा कैसा ...
मुस्कान है उसकी व्याप्त सदा , पर 
आँखों में ये सूनापन छाया कैसा ..! 


मान की शांत लहरों में 
यह अशांत ज्वर है आया कैसा ..
बिजली तो दूर ही कौंधी थी -
फिर ये वज्र उस पर गिरा कैसा !

हलकी हवाओं के झोंकों में 
तूफ़ान के ये आभास कैसा ...

मधुर स्मृतियों के संगम के 
उस पार ये बंजर है कैसा ...!!

-18th Feb 1988. ( written almost more than two decades back... :) 


आज फिर
जली है लौ
उम्मीदों की-
आज फिर ,
झाँका है किसीने
यादों के झरोंखो से !

वो खिलखिलाती सी हंसी ,
वो निगाहों का दौर ,
छिपे हुए थे जिसमें ..
कुछ शरारत , कुछ इजहार
गर करो गौर !

वो नजरे चुराना ,
वो पलकों का उठाना
और फिर शर्म से झुक जाना ,
उन झील सी आँखों में
खुद का खो जाना !

वो एक आहट पर
तेज हो जाना -
धडकनों का !

वो कोशिश करना
उन नजरों से बचकर
उन्ही निगाहों में
देखने की अपने अक्स को !

वो अंखियों को चुराकर,
अंखियों से बहुत कुछ कह देना
और फिर ;
उन अंखियों के झरोखों का
अपने पट बंद कर देना
रह जाना सिमट कर फिर ,
यादों के झरोखों में !

बरसों बाद,
आज फिर ,
झाँका है तुमने
इन झरोखों से !

मुस्कुराहटों से अपनी
दीप्त कर दो एक बार फिर
टिमटिमाती इस लौ को -
उम्मीद की , इजहार की
इंतज़ार की , हाँ इकरार की !

हाँ बरसों बाद
एक बार फिर चले आओ
तुम -
मेरी जिंदगी , मेरा अस्तित्व !!
1-10-94

Alfaaz E Rooh..!


तेरी याद में जब वो लम्हा थामा मैंने ...
वक़्त के ठहर जाने का जैसे गुमान हुआ !
बेखबर इससे ,
आसमाँ में जब तुझे ढूंडा मैंने ..
रुई के फायों सी,
सफ़ेद कतरनों की बौछार का आगाज़ हुआ.. !!

तेरी दीवानगी में ऐसी बेसुध क्या हुई मैं ..
चेहरे पर बर्फ की इस चादर का एहसास भी ना हुआ ...!

जब रूह में मेरी कम्पन हुई ,
क्या तुझे इसका एहसास ना हुआ ...!
मेरे वजूद में बसा है तू ऐसा ...
क्यों तुझे मेरे जख्मों का फिर अंदाज़ ना हुआ !!

सदियाँ  क्यों बीत गयी फिर पल भर में
जब सपनो में तेरा दीदार हुआ ..!!

ज़िन्दगी की इस सुर्ख सफ़ेद चादर में ,
क्यों कतरनों का ऐसा गुबार उठा ... !
रेशा - रेशा जब उधड़ा मेरा दिल ....
एक रेशा तेरे नाम का भी मिला ..!!

दो गज़ ज़मीन पर मुझे ..
तेरे कदमो का जब एहसास हुआ ...
पगों में लिपटा वो रेशा ऐसा ..
की बेड़ियों का सा अंजाम दिया !
आहिस्ता से जुबां पर जब तेरा नाम आया ..
धीरे से फिर क्यों उसने तेरा नाम सिया ...!!

रूह से फिर क्यों सिहरन उठी ऐसी...
जैसे किसी ने तेरा नाम हो लिया ...!
बर्फ की इन सफ़ेद कतरनों ने ,
रुखसार पर मेरे कुछ ऐसा क्या बयां किया ..
शायद हौले से , फिर तेरे होने का पैगाम दिया !!

यादों के इस जलसे में
एक लश्कर -
तेरे नाम भी किया ...!
ज़िन्दगी की इस चादार में ..
एक पैबंद -
तेरे नाम का भी सिया...!!

4th
July 2011. Enjoy!!... God bless!