Thursday, October 18, 2012

मृगतृष्णा

सुरमई सी शाम ,
हौले से 
धरा को आकर थपकी दे गयी ..

दूर क्षितिज में होने लगा था ,
मिलन 
सूरज और धरा का ..
स्वप्न्मुग्ध सी मैं ,
जी रही थी उस पल को ..
साँसों को थामे हुए ..!

इन लम्हों के आगोश में ,
धरा और सूरज ,
थे लजाये - शर्माए से ,
एक दुसरे में लीन ..

मनमोहक सी यह छवि 
घुलने लगी एक दूजे में 
.. ,हौले से .. धीमे धीमे से ..।।

पर ,
मृगतृष्णा से परे ..

सदियों से चले आ रहे ,
काल चक्र के
इस घटना क्रम में ....
धरा और सूरज ..
..
..
क्या कभी एक हो पाए ..?

~ नंदिता ( 18 /10/2012 )


Thursday, October 11, 2012

यादें - 2


यादें .. 

साँसों  की बंदिशें समझाती रहीं 
कुछ सुलझाती रहीं ..
कुछ उलझाती रहीं ..।

ठंडी हवा के झोंकों में ..
तेरी खुशबु फैलाती रहीं ..
लबों में सरसराते हुए ..
गेसुओं में लहराती रहीं ..।


यादें ...

वक़्त की छावं में ,
ऐसा नूर फैलाती रहीं .. ।
फैसले जो बढ़ाते हैं फासले ..
हौले से ,
उनपर मलहम लगाती रहीं ..।         

यादें ..

तेरे मेरे दरमियाँ ..
हर्फों में डूबे , इन फासलों को ..
सहलाती रही ..
सिमटाती रहीं ... 
यादों में ही सही ..
इक साहिल बंधवाती रहीं ..।।

यादें  ..

अपनी तलहटी में ..
तेरे क़दमों की आहट का 
हैं एहसास कराती रहीं ..। 
देखो ,
उन तमाम मसलों को ..
ख़ामोशी से ,
कैसे हैं सुलझाती रहीं ...।। 


- नन्दिता ( 11/10/12) 


Monday, October 8, 2012

यादें ..!!

यादें ..
गुनगुनी धूप सी ..
मेरी रूह को छु जातीं ..
कभी मुस्कुराती ..
खिलखिलाती ...
कभी उदास हो जाती ..
या कुछ याद कर 
शर्मा जातीं  ...!

यादें ..
कुछ खट्टी सी , कुछ मीठी सी 
होठों से खिल कर ,
आँखों कि नमीं में 
कभी कभी ,
गुपचुप गुपचुप समां जातीं..!

यादें ..
कुछ रूमानियत कि ,
कुछ मासूमियत कि ,
कुछ शरारत कि ,कुछ खुमारी कि ..
उन गुज़रे लम्हों कि ,
एक बज़्म सी  फैला जातीं ..!!

यादें..
आंवले के पेड़ तले
उस  अलसाई धूप सी..         
बचपन के आँगन में                        
फुदक सी जातीं  ...!

आंवलों और कंचों में 
तोल मोल के बोल सी ..
या फिर ,
पतंगों के पेंचों में कहीं 
उलझ सी जातीं  ...!

यादें ...
कुछ लजाई सी ...
उस लेम्प पोस्ट के नीचे ,
बेंच पर तेरे बैठे होने का ..
एहसास रूबरू करा जाती ..!

यादें ,
कुछ रूमानी सी ..
सफ़ेद शर्ट और नीली जींस में ,
फूलों को पीछे छुपाये ,
हॉस्टल के गेट में इंतज़ार करते 
तेरे मुस्कुराते चेहरे का 
तस्सवुर करा जातीं ...! 
  
यादें.. 
गुनगुनी धूप सी ..
....
उन लम्हों को ..
फिर इक बार जी लेने कि 
तिश्नगी फैला जातीं ..!

~ नंदिता ( ८/१० /२०१२ )