Thursday, July 28, 2011

मेघा  रे घनघोर तुम बरसो ...
त्रिप्त कर  दो 
फिर 
इस धरा को ,
इन कोमल कपोलो 
की तापिश को ...
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थोडा सा आसमा से ...
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थोडा सा अंखियो से ... !

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