Friday, November 18, 2011

ख़ामोशी -1

ख़ामोशी-
तुम भी कभी-कभी,
बहुत सयानी हो जाती हो ..! 

बिखरे अल्फाजों कि गुत बाँध ,
क्यों बन जाती अनजानी हो ..!!

लफ़्ज़ों के इस खिलखिलाते आँगन में ,
हर्फों का इक बुत सी जाती हो.....!
फिर गुमसुम सी इस चुप्पी में ,
तराना नया एक  छेड़ जाती हो ...!!

थरथराते ये लब जो ना कह पाए ,
मासूम सी इन अंखियों से कह जाती हो ..!!

ख़ामोशी -
तुम भी कभी- कभी 
बहुत सयानी हो जाती हो !!

नंदिता (१८/११/२०११ )

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