ख़ामोशी-
तुम भी कभी-कभी,
बहुत सयानी हो जाती हो ..!
बिखरे अल्फाजों कि गुत बाँध ,
क्यों बन जाती अनजानी हो ..!!
लफ़्ज़ों के इस खिलखिलाते आँगन में ,
हर्फों का इक बुत सी जाती हो.....!
फिर गुमसुम सी इस चुप्पी में ,
तराना नया एक छेड़ जाती हो ...!!
थरथराते ये लब जो ना कह पाए ,
मासूम सी इन अंखियों से कह जाती हो ..!!
ख़ामोशी -
तुम भी कभी- कभी
बहुत सयानी हो जाती हो !!
- नंदिता (१८/११/२०११ )
No comments:
Post a Comment