उमड़ -घुमड़ ,घुमड़ - उमड़ ,
जैसे ही कारी बदरा ये छाई..
तुनक- तुनक, ठुमक - ठुमक ..
मोर ने भी ली इक अंगड़ाई ..!!
दहक - दहक , चहक- चहक ,
सूरज ने भी झाँका नभ से ..
गुपचुप- गुपचुप , छुप- छुप,
बदरा संग खेली छुपन- छुपाई ...!
ठनक -ठनक , छनक - छनक ,
देखो बूंदे धरा पर गिर आयीं ..
मिटटी की इस सोंधी खुशबु ने .
मुझे फिर बचपन की याद दिलाई ...
छपाक- छुपुक, छपाक -छुपुक ,
पानी में पैरों ने मेरे
देखो कैसी ताल बैठाई ...
हुआ मन बावरा, अरमानों ने मेरे ,
फिर नयी उमंग जगाई ...!!
छन - छन , छन- छन ,
करती बूंदे जब
अंजुरी में मेरे भर आयीं....
एक आस मेरे तन मन में ऐसे लहराई..
छप-छप , छप-छप
झट से मैंने
अपने चेहरे पर देखो कैसे हैं ये फ़ैलाई..!!
छमक-छमक, छनक -छनक ,
बावरे पगों ने जब ,
अपनी पायल छनकाई ..
लपक लपक.. लहक लहक
इक आवारा बदरा ने ,
मुझसे तभी आँख लड़ाई ..!
शर्मा कर सूर्य से मैंने ,
जब अपनी गुहार लगाईं..
झुरमुटों से झांकती धूप ने तभी ,
मुंख पर मेरे ऐसी लालिमा फैलाई ...
टप-टप , टप - टप
टपकती इन बूंदों ने
माथे पर मेरे जैसे
सतरंगी बिंदिया हो चमकाई ...!
उमड़-घुमड़, घुमड़- उमड़ ,
जैसे ही ये बदरा छाई ..
मन ही मन मैं देखो ,
एक बचपन और गुज़ार आयीं ...!!
२२- जुलाई-२०११
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