Monday, July 4, 2011

मधुर स्मृतियों के संगम के
उस पार ये बंजर है कैसा ..
यादों की चंचल शोख किरणों में- 
ये अविस्तृत भाव है कैसा !

जलकुंड उस पार , या 
रेत के टिलों की है मृगतृष्णा ..
आह ! नवन्कुर उपजित कर आशा में -
निराशा का ये सागर गहराता कैसा !

अच्छाई उसकी व्याप्त सर्व पर , पर 
धुंध ने गहराया उसका ये चेहरा कैसा ...
मुस्कान है उसकी व्याप्त सदा , पर 
आँखों में ये सूनापन छाया कैसा ..! 


मान की शांत लहरों में 
यह अशांत ज्वर है आया कैसा ..
बिजली तो दूर ही कौंधी थी -
फिर ये वज्र उस पर गिरा कैसा !

हलकी हवाओं के झोंकों में 
तूफ़ान के ये आभास कैसा ...

मधुर स्मृतियों के संगम के 
उस पार ये बंजर है कैसा ...!!

-18th Feb 1988. ( written almost more than two decades back... :) 


1 comment:

  1. Memories ...haahn... when I look back now..I feel I really have come a long way....

    but its nice to tread back on to your past once in a while and see how one felt then... for me its been more like a journey backwards...homebound... :)

    for u all..I do hope you like it... Enjoy!! God bless!! )

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