An ODE to my Pen... अपनी लेखनी को सादर समर्पित ... :)
याद है तुम्हें,
जब चूमा था
पहली बार तुमने
मेरे हाथों को ...!
कितनी
सहमी , सकुचाई
थीं तुम ;
जब मैंने
प्यार से चेहरे को तुम्हारे
लिया था अपने हाथों में !
मिलन की वो घड़ी,
आज भी चित्रांकित है,
मेरे अन्दर....
शर्म और संकोच में लिपटी
कितनी हिचकिचा रही थीं तुम ...
और मेरे विचारों का तूफ़ान ,
जैसे प्रियेसी से मिलने को
प्रिय हो आतुर ...
बिखेरने लगा था,
लालिमा
तुम्हारे होंठो की ... !
रचा डाली थी तब
हमने ,
प्रथम कृति ...
मेरे जीवन की....!!
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