मधुर स्मृतियों के संगम के
उस पार ये बंजर है कैसा ..
यादों की चंचल शोख किरणों में-
यादों की चंचल शोख किरणों में-
ये अविस्तृत भाव है कैसा !
जलकुंड उस पार , या
रेत के टिलों की है मृगतृष्णा ..
आह ! नवन्कुर उपजित कर आशा में -
निराशा का ये सागर गहराता कैसा !
अच्छाई उसकी व्याप्त सर्व पर , पर
धुंध ने गहराया उसका ये चेहरा कैसा ...
मुस्कान है उसकी व्याप्त सदा , पर
आँखों में ये सूनापन छाया कैसा ..!
मान की शांत लहरों में
यह अशांत ज्वर है आया कैसा ..
बिजली तो दूर ही कौंधी थी -
फिर ये वज्र उस पर गिरा कैसा !
हलकी हवाओं के झोंकों में
तूफ़ान के ये आभास कैसा ...
मधुर स्मृतियों के संगम के
उस पार ये बंजर है कैसा ...!!
-18th Feb 1988. ( written almost more than two decades back... :)
Memories ...haahn... when I look back now..I feel I really have come a long way....
ReplyDeletebut its nice to tread back on to your past once in a while and see how one felt then... for me its been more like a journey backwards...homebound... :)
for u all..I do hope you like it... Enjoy!! God bless!! )