Saturday, November 10, 2012



कई बार ,
क्यों हो जाता है 
एक साधारण से
प्रश्न का उत्तर ,
इतना मुश्किल ...!

तुमने कितनी आसानी से
पूछ डाला," कैसे हो" .... 
और मैंने बरसों की 
खामूशियों को तोड़ते हुए 
कह डाला , " ठीक हूँ ". 

पर , 
इस "कैसे हो" से "ठीक हूँ "
के बीच बसी दूरियां बाँचते
इस सफ़र में,
तुम्हारा ये प्रश्न 
क्यों उमड़ता - घुमड़ता गया ..
क्यों मेरा ये उत्तर , 
घुलता गया, पिघलता गया ..


बरसों से पाली,
इस खामोशी को 
वैसे कहने के लिए,
था  बहुत कुछ ...

थे कई गिले शिकवे ..
थीं पेशानियों में कई यादें , 
जमी हुई सी ..।। 

थे कई प्यार भरे लम्हे भी  ,
गोशा, यादों के समुन्दर से ,
लहरें बन उमड़ पड़े हों ..।

एक याद थी,
आँसुओं से उमड़ी हुई ,
हाँ , एक पल भी था,
मोतियों सा बिखरा हुआ .. ।।

तुम्हारे उस
"कैसे हो"की सादगी  ,
है मुझे  निरुत्तर कर जाती ..

पर , तुम ही बताओ  , 
अपने इस "ठीक हूँ" की गहराई ,
मैं  हर्फों में कैसे बाँध पाती ..।।

~ नंदिता ( 10/11/12)


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