Wednesday, November 21, 2012

.... पतझड़- I ....

" पतझड़ में भी बहारें ढूँढता ,
यादों का कारवां ..
शब्दों का क्या कभी,
मोहताज रहा ..।। 

नज़रों ने ढूँढा था नज़रों को 
जिस तरह 
वो वाकया भी बेमिसाल रहा ..।


किताबों के पन्नों में ,
गुल न दबा था कभी कोई ..
स्मृतियों का गुलिस्ताँ
फिर भी आबाद रहा ..।।

क़दमों तले ,
सूखे चरमराते इन पत्तों में ,
ज़िन्दगी तेरी
तल्खीयों का एहसास हुआ .. ।

फिर भी, इस दिल ने,
यादों का गुलिस्ताँ समेटे ,
आज पतझड़ को
बहारों से आबाद किया ...।।

नंदिता ( 21/11/12 )







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