कई बार ,
क्यों हो जाता है
एक साधारण से
प्रश्न का उत्तर ,
इतना मुश्किल ...!
तुमने कितनी आसानी से
पूछ डाला," कैसे हो" ....
और मैंने बरसों की
खामूशियों को तोड़ते हुए
कह डाला , " ठीक हूँ ".
पर ,
इस "कैसे हो" से "ठीक हूँ "
के बीच बसी दूरियां बाँचते
इस "कैसे हो" से "ठीक हूँ "
के बीच बसी दूरियां बाँचते
इस सफ़र में,
तुम्हारा ये प्रश्न
क्यों उमड़ता - घुमड़ता गया ..
क्यों मेरा ये उत्तर ,
घुलता गया, पिघलता गया ..
बरसों से पाली,
इस खामोशी को
वैसे कहने के लिए,
था बहुत कुछ ...
थे कई गिले शिकवे ..
थीं पेशानियों में कई यादें ,
जमी हुई सी ..।।
थे कई प्यार भरे लम्हे भी ,
गोशा, यादों के समुन्दर से ,
लहरें बन उमड़ पड़े हों ..।
एक याद थी,
आँसुओं से उमड़ी हुई ,
हाँ , एक पल भी था,
मोतियों सा बिखरा हुआ .. ।।
तुम्हारे उस
"कैसे हो"की सादगी ,
है मुझे निरुत्तर कर जाती ..
पर , तुम ही बताओ ,
अपने इस "ठीक हूँ" की गहराई ,
मैं हर्फों में कैसे बाँध पाती ..।।
~ नंदिता ( 10/11/12)
lovely!
ReplyDeleteThank you... Happy Deepawali!
Deletesundar...
ReplyDeleteDhanyawaad!!
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