Tuesday, August 9, 2011


तिमिर रश्मियों की , मैं तुम्हारी रात भी हूँ..
नील अम्बर की , राज कण धरा की हूँ ,,,!
ज्वाला ज्योति बनी मैं , अंधकार भी हूँ ,
जलती हुई राख भी और , फूलों का पराग भी हूँ ...!!

तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

आशा का दीप भी , निराशा भरी अंजलि भी हूँ ..
गहराई हूँ सागर की , तो ऊंचाई हिमालय की हूँ ..
स्मित हास की हूँ किरणे, तो हूँ रोष अग्नि की ..!
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

झूठ भी हूँ , मै सत्य की पुकार भी हूँ ,
पंथ दूसरों को बताते हुए, खुद भटक गयी हूँ..
विश्वास भी हूँ, अविश्वास की गाह भी हूँ ..!
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

कौवे की काँव हूँ , तो बुलबुल की पुकार भी हूँ ,
ज्ञान दीप में मैं अज्ञान का भण्डार भी हूँ ..
कड़कती धूप में मै छाया का आवास भी हूँ
तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

सौरभ कण सम,काँटों का जाल भी हूँ ..
लम्हा भी हूँ, विस्मृत भाव भी हूँ ..
भृकुटी तानी हुई मृत्यु हूँ , नव अंकुर झंकार भी हूँ
उर में जन जन की बदली आग भी हूँ ...!

तिमिर रश्मियों की मैं तुम्हारी रात भी हूँ ...

नंदिता ( 13th Oct 1987)

Reflections..!!!.... the Devil and the Divine aspect in one's own self... a conversation with my Soul... :) Enjoy!!

1 comment:

  1. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

    ReplyDelete