Monday, September 3, 2012

प्रकृति

प्रकृति में सिमटे हैं , कई किस्से ऐसे ऐसे ,
सिखलाते जीवन के जो ,कई माएने कैसे कैसे !

सुबह सुबह आँगन में ,
सूरज थपकी देता ऐसे ,
काली निशा में आशाओं का 
मानो पदार्पण हुआ हो जैसे !

देखो , स्फुटित हुई एक पाषाण से 
नव कपोल कुछ ऐसे ,
कठिन परिस्थितियों में उमड़ उठी हो ,
मानो, उम्मीद उमंगे जैसे !

प्रफुल्लित हो उठा मन मेरा ,
जान प्रकृति के किस्से ,
प्रेरणा स्रोत बन सुखमय कर देते 
जीवन के हर हिस्से !

- नंदिता पाण्डेय ( अप्रैल '१२ )

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