ओ! जादूगर रंगरेजन
रंग दीजो मोरी ऐसी पैराहन
मैं रंग जाऊं ऐसो रंग,
पहन उसे इठलाऊँ मैं
खिल जाये मोरी चितवन..
ओ! जादूगर रंगरेजन
रंग दीजो मोरी ऐसी पैराहन... !
केसरिया हो उसमें ऐसा,
छलकाए मीरा का दीवानापन..
भर दो लाल उसमें ऐसा सुर्ख ,
महकाए जो राधा की अगन ..!
पहन उसे यूँ झूम जाऊं मैं ,
सुनी हो जैसे बांसुरी कि धुन ..!
ओ ! रंगरेजन रंग दीजो ,
एक छींट हरी सी, पीली सी भी ,
जैसे हरित वसुधा हो ढक जाये,
सरसों की महकती चादर तन..!
सरसों की महकती चादर तन..!
पहन उसे यूँ इतरा जाऊं मैं ,जैसे
राधा कि चूड़ी ने की हो खन-खन ..
हाँ, एक गुलाबी लहरिया भी
जैसे, राधा हो लजाई ..
सुन नाम पिया का मोहन..!
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग दीजो मोहे ऐसी पैराहन.. !!
ओ! जादूगर रंगरेजन ,
गेसू मोरे हैं कारे घन
भर दो चुनरी में ऐसो रंग..
लहराऊँ उसे जब वन-उपवन
लगे जैसे मयूरों का नर्तन
हो देख, सघन मेघों को, मगन..!
ओ ! जादूगर रंगरेजन
छेड़ो रंगों का ऐसा सम्मोहन
सुध-बुध बिसरा जाये मोरी..
हो प्रीत विवश मैं बन जाऊं
अपने प्रियतम की जोगन..!
ओ! जादूगर रंगरेजन
रंग दीजो मोरी ऐसी पैराहन ..
ओ! जादूगर रंगरेजन
किस रंग मेरी प्रीत रंगी
ये तोसे का बतलाऊँ..
श्याम नाम जप ऐसी खोई
आपहि श्यामल हो जाऊं..!
ओ! जादूगर रंगरेजन
रंग दीजो मोरी ऐसी पैराहन ..!!
ओ! जादूगर रंगरेजन
रंगों के इस मायजाल में
तोसे काहे लागी ऐसी लगन...
खुद श्यामल हो समझी मैं ,
तू ही है कान्हा, तू ही मोहन..!
ओ जादूगर रंगरेजन
मैं बावरी, हुई मगन ..
पहन आज, ये पैराहन ..!!
- नंदिता . ( २/३/२०१२ )
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति।
Thank you... :)
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