सुबह कि धूप का एक पुलिंदा ..
जब गिरता है तेरे चेहरे पर.. ..
मिचमिचाती आँखों के बीच ..
मासूम से इस चेहरे पर
खिल जाती तब , अद्भुद एक मुस्कराहट ...
दीप्तमई कर देती है वो , स्याह सी
मेरी इस ज़िन्दगी के अंधियारे को ...!
हर रोज़ ,
रात के साए में लिपटे ,
अनसुलझी सी पहेली से ,
मेरी परछाई के ये क्षण ..
घुलते - मिलते..,उधड़ते -बुनते
ये पल ..
इंतज़ार मैं बैठे रहते हैं ,
फिर एक और सुबह का..
जब धूप का एक पुलिंदा ,
आ बैठेगा फिर तेरे चेहरे पर ..
तेरी इस मासूम सी हंसीं से ,फिर खिल उठेगा जहाँ मेरा ..
तेरे अक्स में छुपा है कहीं ... मेरा खोया अक्स भी ..
तुझे शायद पता नहीं ..
मुझसे वो,
अलहदा हो बैठा था जो नूर मेरा ..
आज,
तेरे चेहरे पर फैली इस मुस्कान से ,
फिर रौशन कर रहा है जहाँ मेरा ...!!
नंदिता ( 25/01/12)
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
Waah. . !
ReplyDeleteKya khoob likha hai har baar kuch naya kuch anokha.
Aabhaar.....!!
बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.
Deleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर पधार कर मेरे प्रयास को भी अपने स्नेह से अभिसिंचित करें, आभारी होऊंगा.
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Thank you all...
ReplyDeleteM delighted to know that you have liked it...
shall visit your blogs too...
love and light!
warm regards!