Wednesday, November 19, 2014

कौन कहता है मुहबत्त की ज़ुबाँ  नहीं होती ……।। 

झुरमुटों से झांकती,
दरख्तों में लिखी इबादतें।
सदियों से,
बन इश्क़ की सदा 
गुनगुनाती रही हैं फरियादें ...!! 

वक़्त और जहां से बेखबर ,
पेड़ों के आगोश में सिमटी 
देखो ,
आज भी कैसे  
ले रही हैं जीवन्त साँसें .... !!!.. 

नन्दिता ( 19/11/2014) अभी अभी  :) 



4 comments:

  1. पेड़ों पे लिखी इबारतें हवा बन के गूंजती हीन फिजां में ...
    अच्छी रचना ...

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  2. सच कहाँ आपने प्रेम के शब्द तो
    कुछ अधरों पर ठहरे हैं।
    कुछ आँखों में विखरे हैं।
    http://savanxxx.blogspot.in

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