Monday, July 1, 2013

Haan , Itni si shikayat hai tumse..!!

महादेव ,
एक छोटी सी शिकायत है तुमसे ..

तुम थे ,
पर्वत, नदी,पेड़,धरा में विलुप्त ..
अविकल सी इस झील में सुप्त ,
अडिग अचल अवस्था में लुप्त  
कभी जाने पहचाने से,कभी गुप्त ..!!

 और नादाँ  मैं ,
 चीर स्थितियाँ विक्षिप्त ..  
 मूक बधिर पाषाण सम
 खड़े तुम में,  हो आसक्त..
 अविरल, ढूँढती रही अपना तत्त्व ..। 


 देव ,  
 तुम स्वयं में आधीन , लिप्त ..
 अपने देवत्त्व के इस घनत्त्व से ,
 धूमिल करते जा रहे हो मेरा अस्तित्व ..।। 

 हाँ ,
 बस, इतनी सी शिकायत है तुमसे ..!

 ~ नंदिता ( अभी - अभी-  6:15 pm )
 1/07/2013.



2 comments:

  1. पढ़ कर मुंह से वाह वाह ही निकलता हैं
    सच में बेहद सार्थक रचना है।
    बहुत अच्छी लगी

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  2. Dhanyawaad..!!.. God bless you too.. :)

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