Sunday, June 9, 2013

Prem Fakira..!!

मैं इक आज़ाद ,
उन्मुक्त पवन ..
बहती रही मदमस्त 
धरा हो या फिर हो गगन ..

बेफिक्र नदी सी  
अठखेलियाँ खेलती
उछलती फुदकती 
बहती रही ..
छन छन , छन छन।

प्रेम फकीरा ..
पर ,तुम्हारी दीं 
इन उपाधियों के बंधन 
में तो तप रही है
मेरी प्रेम अगन .. ।। 

फिर क्यों ,
अपने इस फ़कीरी बंधन 
का दे रहे हो आज मुझे 
दोष , ऐसा सघन ..।। 


गर प्रीत का
करते नहीं तुम हनन 
गर,
बाँध लेते साहिल एक 
बाहों का अपनी , चौघन ..। 

देख लेते तुम भी ..
तूफानी, तब ये 
जलधर घनन,  
सिमट जाता कैसे ,
बाहों में तुम्हारी  
बनके इक ठहराव गहन ...।। ..

प्रेम फ़कीरा .. 
जाने दो ,
न कर पाओगे तुम    
ये प्रीत  सघन ..। 

रहने दो,
मुझे यूँ ही 
बनके प्रेम जोगन ..!!..

- नंदिता 

09/06/13.


9 comments:


  1. sabke bas ki bat nahi ye preet nibhana !
    beautifully expressed Nandita !

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  3. Banao Khilao : Thank you... God bless!

    Kaliprasad ji: Dhanyawaad..!.. zaroor... will check right away.. warm regards!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  5. आप की इस रचना में खास यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आई है ..

    प्रेम फ़कीरा ..
    जाने दो ,
    न कर पाओगे तुम
    ये प्रीत सघन ..।

    रहने दो,
    मुझे यूँ ही
    बनके प्रेम जोगन ..!!..

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