Monday, December 19, 2011

उफ़! ये दिल्ली कि सर्दी ...!!!


कोहरे से खेली आज जब छुपन छुपाई ..
साड्डी गड्डी ने भी ऐंठ दिखाई ..
DND Flyway में कुछ ऐसे इतराई 
लगा बादलों में हो रही  है फिसलम फिसलाई ..!

ये देख बचपन कि हमें बहुत याद आई ,
जब कोहरा होता था , परियों कि रज़ाई ..
क्षण भर को इक नन्ही परी , मेरे अन्दर भी इठलाई..!

पर तभी steering wheel ने ऐसी swing दिखाई..
और एक झटके में यथार्थ ने , दिमाग में दस्तक लगाई..
हाय ! तब  दिल्ली कि इस सर्दी को दी हमने राम दुहाई ..!

साड्डी गड्डी को भी हमने डांट लगाई ..  
तुम्हारी इन अठखेलियों से मेरी जान पर बन आई..!!
कोहरे से भी हमने तब मिन्नत लगाई .. 
ना करो इस सर्दी में ऐसी छुप्पन छुपाई..!!
- नंदिता ( १९/१२/२०११ )

Thursday, December 15, 2011

Happy Birthday!...Delhi..


मेरे नज़रिए से देखो तो, बड़ी दिलवाली है ये दिल्ली.. .

कुछ असमंजस , कुछ हौसलों से भरे .
रखे मैने कदम थे जहाँ,  वो शहर था दिल्ली.. 
खाली थे हाथ , बस खवाबों से भरी थी झोली मेरी ,
लिया मुझे हाथों हाथ ..जिस शहर ने , वो शहर था दिल्ली ,
चुन चुनकर बुने ख्वाब मैंने जिसमें  ..
वो सिलाई थी  दिलाई जिसने , उस शहर का नाम था दिल्ली !

मैंने तो बस चाहा था इक छोटा सा घरौंदा अपना ..
जिसने अपने दिल को ही नहीं ,
दुनिया को बना दिया आशियाँ मेरा ,
उस शहर का नाम था दिल्ली .. !

मेरी नज़र से देखो तो .. दिल वालों कि है ये दिल्ली ..
हर शक्श जो आया यहाँ ,उसके खाव्बों का अरमान है ये दिल्ली !

नहीं बन रहे हम एवैयीं शेखचिल्ली ..
कहे कोई तुझे कुछ भी ,
तुझ पर हम हैं कुर्बान, ऐ! दिल्ली ..!!
दिया तूने बहुत कुछ ,तेरे शुक्रान है ऐ! दिल्ली ..
मेरी नज़र से देखो तो , मेरी जान है ये दिल्ली ..!!
नंदिता (१५/१२/२०११ )

Friday, December 2, 2011

उम्मीद -1


उम्मीद -1

उम्मीद से जब हम रूबरू हुए ..
बड़ी बेआबरू सी ज़िन्दगी में,
मानो कुछ हलचल सी हुई ..!!

मायूस सी इस इन अंखियों में ,
उम्मीद की रौशनी जब प्रफुल्लित हुई ..!
दिप्त्मायी हो उठा तब वो जग मेरा ,
काली निशा भी नयनो में, काजल बन सजी ..!

इस नूर-ए-चश्म से हम बागी क्यों थे ..
आज हमें ये हैरानी सी हुई ..!
तेरे इस नूरानी एहसास ने ,
एक नयी तहरीर  लिखी ..

ज़िन्दगी से बाबस्ता हम फिर हुए ,
अंतर्मन में बसी  कशमकश ख़त्म हुई !

उम्मीद तुझ से आज जब हम रूबरू हुए ..
ज़िन्दगी फिर से मेरी रौशन  हुई ..!!

नंदिता (२/१२/२०११ )



Thursday, December 1, 2011

KHAMOSHI - 5


ख़ामोशी - ५ 

तुम ख़ामोशी के सीरे को थामे  ..
अपनी बात बयां करते रहे ..
नादाँ हम, शब्दों के इस मंथन में 
यूँ ही तुम्हारी बाट जोहते रहे ..!! 

नासमझी का ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा ,
नाउम्मीद से ये  फासले और बड़ते गए ..!

तेरे मेरे दरमियाँ, 
अधूरे से वो जो ख्वाब थे; बुनते गए ,उधड़ते गए ..! 
रह गया पीछे , खामोश सा ,एक दर्द भरा रिश्ता, 
क्यों नहीं उससे भी, हम बिछुड़ से गए..!
क्यों बार बार तुम और मैं ,
इस दर्द कि तासीर से उलझते गए , जुड़ते गए ..!!

तुम खामोशी से , अपनी बात बयां करते रहे ,
नादाँ हम, शब्दों में तुम्हारी बाट जोहते रहे ...!!
नंदिता (१/१२/२०११ )