ख़ामोशी -४
गुलज़ार थी जिसमे , इक मज़ाहर - ऐ - उल्फत ...!
आया इक तूफाँ , कुछ ऐसा ना जाने क्यों बहकर ,
भर दी जिसने दिल में , शिकवा और शिकायत ...
बड़ गए फिर फासले ,
बिछ गई, गिला ऐ फलसफों कि सतावत ..!!
इस गुलिस्ताँ ऐ उल्फत में है सब्त ,
तेरी ये मुतल -कुलहुक्म खामोशी....!
दामन ऐ दहार में जिसे ,
नवाज़ी है हमने बहुत अक़ीदत .. !!
अब ज़िद है हमें भी ,कभी तो कहोगे तुम भी ,
शुक्रान ऐ मुहब्बत, है तेरी ही ये नियामत ...!
यूँ ही नहीं बने हैं हम , तेरी ख़ामोशी कि आदत ..
होगा कभी तो तुम्हें भी , इक एहसास ऐ मुक़द्दस ,
आखिर,
ये सादिक़ ऐ उल्फत ही दिखा सकती है ऐसी अज़ामत...!!
ये सादिक़ ऐ उल्फत ही दिखा सकती है ऐसी अज़ामत...!!
-नंदिता ( २१/११/११ )
word meanings :
( अज़ामत - greatness , सादिक़ - ऐ -उल्फत - true love , मुक़द्दस - sacred , अक़ीदत - respect , दामन ऐ दहार - on the face of this world , मुतल - कुलहुक्म- arrogant , सब्त - etched , फलसफों - philosophies , सतावत - grandeur , मज़ाहर ऐ उल्फत - symbol of love , चमनाज़ार- garden , मुनाक्कश - picturesque )